Kar Kamal, Kamal Kar

कर कमल, कमल कर

 

आदमी क्या है? इस फलसफी की डोर को बहुतों ने सुलझाने की कोशिश की। उलझ कर रह गए। सिरा मिला नहीं। संस्कृत के वैज्ञानिक भाषा होने का फायदा ये है कि आप मूल में जा सकते हैं, मतलब निकाल सकते हैं। व्यक्ति व्यक्त होने की क्रिया या भाव है। व्यक्ति वह जो व्यक्त है। वह जो व्यक्त करे वह अभिव्यक्ति। जो बोले वह वक्तव्य। मोटा-मोटी आप वही हैं जो आप कहते हैं। बोल में मोल है तो आप अनमोल हैं, बोल में झोल है तो आप महाझोल हैं। कल जो आप बोल रहे थे वही थे आप। डीएमके के करूणानिधि जो मोदी को जयललिता से मित्रता के लिए काला चश्मा पहन कर कोसते थे, अभी मोदी की मुहब्बत की कसमें खा रहे हैं। जया तीसरे मोर्चे में गई हैं तो मोदी के मोर्चे में अपनी जगह बना रहे हैं। कल तक जिसे डंडे से भी नहीं छूने की प्रतिज्ञा की थी, उसके झंडे से लिपट कर चिल्ला रहे हैं। जगदम्बिका पाल भी भाजपा में जा रहे हैं। कल कुछ और व्यक्त कर रहे थे। आज कुछ और व्यक्त कर रहे हैं। कल कोई और व्यक्ति थे, आज कोई और व्यक्ति हैं। यूपीए वाले रामविलास एनडीए वाले पासवान से अलग थे। उन्हें कल तक जिस बू से परेशानी थी आज उस की खुशबू में नहा के निकले हैं। नए हो गए हैं। इस बिल्कुल नए व्यक्ति का स्वागत कीजिए।

यूपीए में पुराने हो गए थे। लालू जी लालटेन की रोशनी देते थे मगर लालटेन नहीं। जब से बिजली गई है तब से एक ही सहारा है। नीतीशजी ने लालूजी के घर में शार्ट सर्किट करने की कोशिश की। फेल हो गए। लालटेन में शार्ट सर्किट नहीं होता। जदयू की जद में ना आ जाए, अंधड़ में लालटेन भकभकाके बुझ ना जाए इसलिए लालूजी और सारा परिवार लालटेन को घेर के बैठ गए। आंधी के जाने का इंतज़ार किया। बुझने ना दिया। तेल कम ही सही पर पेंदी से जो जमीन पर तेरह बूँद टपक गया था, उसमें से नौ वापस सोंख के लालटेन में गारे हैं। चार बूँद निकला भी तो ज़मीन ही सोंख लेगा। मद्धम ही सही, जब तक तेल है इस दिये में दम है। पर इस मद्धम लालटेन से दो घरों को रौशन करना लालू जी के हाथ में नहीं था। एक हाथ राहुल जी के हाथ में था, दूसरे से गमछा पकड़ लालटेन बचाएं या पासवान कुनबे के‘घर’ में दीया दिखाएं।

पिछले चुनाव के बहाव में जब पासवान जी की लुटिया लुढ़क गई तो लालूजी उन्हें बचा कर दिल्ली तक लाए थे। पासवान और लालू में जैसा समीकरण था चिराग और तेजस्वी में वैसा ही होता क्या? तेजस्वी का लालटेन जलेगा तो चिराग बेचारा क्या करेगा। और अगर लालटेन बुझ गया तो चिराग को खुद जलना पड़ेगा रौशनी के लिए। उधार की रौशनी पर कब तक रह सकते हैं आप। चिराग तो चिराग, रामविलास तक उदास थे। उधार की ये रौशनी जब टिमटिमाने लगी तो पासवान को पुराना गाना याद आया: कोई चिराग जलाओ बहुत अंधेरा है। लालटेन किरासन तेल से जल जाता है, चिराग को तो घी चाहिए। दाग लगी तो दामन छोड़ा था, पकड़ लेंगे तो हम धो देंगे। तुम मुझे घी दो, हम तुम्हें लेजिटिमेसी देंगे। गुजरात से अमूल का घी मंगवाया गया। चिराग जला तो घर केसरिया रोशनी में दमक उठा है। बेटे ने योजना पर अमल कर दिया, अपने कर कमल से सब कमल कर दिया।

बीजेपी गा रही है घर आया मेरा परदेशी, प्यास बुझी मेरे आंगन की। राजनाथ के आलिंगन में पासवान ने वही कहा कि पहले भी कह चुके हैं, इस भगवे दिल में पहले भी रह चुके हैं। अब जब बाहों में झूल चुके हैं, कल के कटु शब्द सभी भूल चुके हैं। सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। बिहार भाजपा के कई लोगों को ये समझ नहीं आ रहा कि सुबह का भूला शाम को घर आता क्यों है। वो इसलिए कि भैया सुबह का भूला भूला भले हो, भोला नहीं होता। दिन भर सूरज रहता है,  भान रहता है, दृष्टि रहती है, ज्ञान रहता है। शाम ढले तो अंधेरे का डर सताता है, आदमी वापस लौट आता है।

रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गए सो गए। रात आई तो तिवारी बाबा जैसे लोग निकले राहों में और खो गए। इनका अपना घर नहीं है। जहां धर, वहीं घर। ये पतंगे हैं। लैम्पपोस्ट के नीचे हो, या लालटेन के इर्द गिर्द। रौशनी होगी तो चले आएँगे। शिवानन्द तिवारी सुबह के भूले नहीं हैं. ये हर उस भूल के फूल हैं जो दूसरे करते हैं। कमल भी एक फूल है। जनता की आंखों में धूल है। वोटर तो अंग्रेजी वाला फ़ूल है। उसके फ़ में नुक्ता है। देखिए इस बार उसके आंगन में क्या उगता है।

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